मध्यप्रदेश में टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए 2011 को ‘टीकाकरण वर्ष’ घोषित किया गया है, प्रदेश में टीकाकरण की स्थिति को बता रहे हैं राजु कुमार.
मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर एवं बाल मृत्यु दर बहुत ही ज्यादा है. प्रदेश में टीकाकरण की कमी के कारण भी हजारों बच्चे असमय मौत का शिकार हो जाते हैं. ये बच्चे उन बीमारियों का शिकार हो जाते हैं, जिन्हें टीके के माध्यम से रोका जाना संभव है. सूचना एवं जागरूकता के अभाव में प्रदेश के आधे से ज्यादा बच्चे टीकाकरण से वंचित हैं. टीकाकरण के दायरे को बढ़ाने के लिए प्रदेश सरकार ने वर्ष 2011 को ‘टीकाकरण वर्ष’ घोषित किया है. राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के संचालक डॉ. मनोहर अगनानी कहते हैं, ‘‘टीकाकरण के प्रति लोगों को जागरूक करने एवं इसके लिए मूलभूत संसाधनों को उपलब्ध कराने का प्रयास इस साल किया जा रहा है.’’
मध्यप्रदेश में पिछले कुछ सालों में टीकाकरण की स्थिति में सुधार देखने को मिलता है, पर उसे संतोषजनक नहीं माना जा सकता है. 2002-04 में जिला स्तरीय स्वास्थ्य सर्वे-2 में 30.4 फीसदी बच्चों का ही संपूर्ण टीकाकरण हो पाया था. यह 2007-08 में किए गए जिला स्तरीय स्वास्थ्य सर्वे-3 में बढ़कर 36.2 फीसदी तक पहुंच गया. इस बीच लगभग पांच साल में 5.8 फीसदी ही टीकाकरण बढ़ पाया था. जबकि इसके महज एक साल बाद कव्हरेज इवैल्यूएशन सर्वे 2009 में प्रदेश में संपूर्ण टीकाकरण का स्तर 42.9 फीसदी पर पहुंच गया. यद्यपि यह राष्ट्रीय औसत 61 फीसदी से बहुत पीछे है, पर एक से दो साल के बीच स्थितियों में आई तेज सुधार से यह संभावना जगी है कि मध्यप्रदेश को राष्ट्रीय औसत तक पहुंचने में ज्यादा समय नहीं लगने वाला है.
प्रदेश में टीकाकरण की स्थिति में सुधार के लिए यूनीसेफ राज्य सरकार को लंबे समय से मदद कर रहा है. अब टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए यूनीसेफ ने इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) एवं मध्यप्रदेश सरकार के साथ मिलकर ‘मीडिया की सहभागिता’ कार्यक्रम की शुरुआत भी की है. पिछले दिनों यूनीसेफ ने जबलपुर एवं भोपाल में इग्नू एवं स्वास्थ्य विभाग के साथ मिलकर पत्रकारों के लिए कार्यशाला का आयोजन भी किया. मध्यप्रदेश में यूनीसेफ की प्रतिनिधि डॉ. तान्या गोल्डनर कहती हैं, ‘‘टीकाकरण अभियान में मीडिया का सहयोग लेने से गांव के लोगों में टीकाकरण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और कार्यकर्ताओं लिए यह उत्साहवर्द्धन करेगा. टीकाकरण के प्रति जनमानस जागरूकता बहुत ही जरूरी है क्योंकि इससे जीवन की रक्षा होती है, खासकर ऐसे राज्य में जहां शिशु मृत्यु दर देश में सबसे ज्यादा है. हमारा उद्देश्य एक-एक बच्चे तक पहुंचना है, इसके लिए मीडिया एवं पत्रकारों की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण हैं.’’
यूनीसेफ के संचार अधिकारी अनिल गुलाटी कहते हैं, ‘‘हमारा उद्देश्य मीडिया के माध्यम से लोगों तक टीकाकरण के बारे में सही जानकारी को पहुंचाना है, जिससे कि लोगों के पूर्वाग्रह खत्म हो और वे नियमित टीकाकरण में अपने बच्चों को लेकर आएं. इसके साथ ही जहां अच्छे प्रयास हुए हैं, तो उनकी प्रक्रिया मीडिया में आए, जिससे कि अन्य जगहों के स्वास्थ्य कार्यकर्ता प्रेरणा लेकर टीकाकरण के दायरे को बढ़ा सकें.’’ टीकाकरण से तपेदिक, पोलियो, डिप्थीरिया, काली खांसी, टेटनस, हेपटाइटिस-बी, खसरा एवं जापानी एंसीफैलाइटिस जैसी जानलेवा बीमारियों से बच्चों की रक्षा होती है. शिशु मृत्यु दर एवं बाल मृत्यु दर के आंकड़ों में कमी लाने के लिए इन बीमारियों से बचाव बहुत ही महत्वपूर्ण है.
प्रदेश में अभी भी सिर्फ 12 जिले हैं, जहां 50 फीसदी से ज्यादा संपूर्ण टीकाकरण हो पाया है. 5 जिलों में 40 से 50 फीसदी, 15 जिलों में 30 से 40 फीसदी एवं 18 जिलों में 30 फीसदी से भी कम टीकाकरण हुआ है. बालाघाट जिले में 90 फीसदी से भी ज्यादा टीकाकरण हुआ है. एक आदिवासी बहुल एवं दुर्गम इलाके वाले जिले में टीकाकरण की इस सफलता ने देश के लोगों का ध्यान आकर्षित किया है और उसे मॉडल मानते हुए उसी तरह के प्रयास अन्य जिलों में किए जाने की सिफारिश कर रहे हैं.
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