Saturday, September 17, 2011

चम्बल में बेटियों को बचाने के लिए आगे आईं महिलाएं

ग्वालियर। मध्य प्रदेश के ग्वालियर-चम्बल अंचल की पहचान बागी तेवरों के कारण पूरी दुनिया में है। डकैतों का ‘साम्राज्य’ भले ही अब इस इलाके से खत्म हो गया हो, मगर यहां के लोगों के बगावती तेवर अब भी बरकरार हैं। इस बार महिलाओं ने बागी तेवर अपनाते हुए बेटियों को बचाने की मुहिम छेड़ दी है। मध्य प्रदेश के चम्बल इलाके के मुरैना तथा भिंड जिले में बेटियों के जन्म को वर्षों से अभिशाप माना जाता रहा है। यहां आलम यह है कि बेटियों का या तो जन्म से पहले गर्भपात करा दिया जाता है या उन्हें जन्म के बाद मार दिया जाता है। यही कारण है कि यहां बेटियों की संख्या का अनुपात राज्य के अन्य जिलों के मुकाबले सबसे कम है।  
राज्य में शिशु लिंगानुपात 1000 बालकों पर 912 लड़कियां हैं, तो मुरैना में यह आंकड़ा 825 तथा भिंड में 835 है। यह स्थिति हर किसी को चिंता में डाल देने वाली है। सरकार की ओर से जारी कोशिशें भी अपना असर नहीं दिखा पाई हैं। बालिकाओं की कम होती संख्या से चिंतित महिलाएं ही बेटियों को बचाने के लिए आगे आई हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर महिलाओं को जागरूक कर रही हैं, वे गीत-संगीत व नाटकों के जरिए महिलाओं को बेटी का महत्व बता रही हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के ‘मुट्ठी बांधो बहना’ नाम से भिंड व मुरैना जिले में जनजागृति लाने वाले दल बनाए गए हैं। ये दल महिलाओं को बता रहे हैं कि बालिकाएं रहेंगी तो सृ‌ष्टि बचेगी। वे महिलाओं को संदेश दे रही हैं कि किसी भी सूरत में बेटियों को न मारें और न ही ऐसा करने वालों का साथ दें। अगर ऐसा करने को कोई मजबूर करता है, उसके खिलाफ थाने में शिकायत दर्ज कराएं। भिंड जिले के सिंघवारी गांव की बुजुर्ग महिला नारायणी बताती हैं कि किसी दौर में यहां बेटियों को जन्म के साथ ही मारने की कोशिश शुरू हो जाती थी। नवजात के मुंह में तम्बाकू द॓कर मार दिया जाता था। जब ऐसा करने में सफलता नहीं मिलती थी तो उसकी गर्दन दबा दी जाती थी। वह बताती हैं कि पहले से यह प्रवृत्ति कम तो हुई है, मगर पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। बेटियों को मारने की प्रवृत्ति का खुलासा अभी हाल ही में भिंड के खरउआ गांव में हुआ, जहां पूर्व सरपंच ने कथित तौर पर अपनी बेटी की हत्या कर दी। महिला बाल विकास के संयुक्‍त संचालक सुरेश तोमर बताते हैं कि बेटी की हत्या करने वाले व्यक्‍ति के खिलाफ कार्रवाई की गई है। वह आगे बताते हैं कि सरकार की ‘लाड़ली लक्ष्मी’ जैसी योजना बेटियों को समस्या मानने वालों की सोच में बदलाव लाने में मददगार बन रही है।
 
महिलाओं में जागृति लाने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के भिंड व मुरैना में दल बनाए गए हैं। ये दल जब भिंड जिले के सिंघवारी गांव में नाटक प्रस्तुत कर रहे थे तो महिलाएं व बच्चियां इसके गीत-संगीत से प्रभावित नजर आईं, साथ ही उन्होंने बेटियों को बचाने का संकल्प भी लिया, मगर गांव के पुरुष वर्ग के लिए ये महज मनोरंजन से ज्यादा कुछ नहीं थे। दल की सदस्य भी यह बात मानती हैं कि उन्हें कई दफा विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है, मगर आखिर मेंं वे अपना संदेश पहुंचाने में सफल हो ही जाती हैं। वे हर रोज दो गांवों में जाकर गीत-संगीत के जरिए महिलाओं को उनका अधिकार भी बता रही हैं और बेटियों को बचाने का संदेश भी दे रही हैं।

1 comment:

adeel said...

aap ka ye blog pad ke kafi achcha laga ......dil se ek awaz aai jai se beti kah rahi ho ki mujhe bhi jine do mai bhi jina chahti hun.